** लोगों तक सहायता पहुंचाने में पीआरवी का अहम योगदान
** राशन व दवा की सप्लाई जारी, नहीं है कोई रूकावट
** स्वैच्छिक संगठनों से इस पुनीत कार्य मे सहयोग करने की अपील
नोएडा। कोरोना वायरस के खतरे ने हर खास-ओ-आम को घरों में रहने के लिए मजबूर कर दिया है। रोज कमाने-खाने वालों के लिए इस मजबूरी ने बड़ा संकट खड़ा कर दिया है। लेकिन गौतमबुद्ध नगर पुलिस प्रशासन ने इस संकट का एक संवदेनशील उपाय निकाल लिया है। इससे पुलिस का एक मानवीय चेहरा भी सामने आ रहा है। पुलिस ने ऐसे घरों में राशन पहुंचाने की जिम्मेदारी उठाई है।
गौतमबुद्ध नगर पुलिस कमिश्नर आलोक सिंह ने बताया कि हमने जरूरतमंदों तक राशन पहुंचाने का बीड़ा उठाया है। हमारी कोशिश है कि जनपद में कोई भूखे पेट न सोए। इसके लिए बकायदा राशन भंडार बनाया गया है। इस कार्य में अलग अलग संगठन व स्वयंसेवी संस्थायें पुलिस की मदद कर रही हैं।
उन्होंने बताया कि इस कार्य के लिए डिप्टी पुलिस कमिश्नर वृंदा शुक्ला मोबाइल नंबर 8595902510 को नोडल अधिकारी बनाया गया है। जनपद के जो भी गैर सरकारी संगठन इस पुनीत कार्य में पुलिस की मदद करना चाहें, वह इनसे संपर्क कर सकते हैं ।
पुलिस कमिश्नर आलोक सिंह ने बताया कि राशन भंडार से से हर रोज पुलिस गाड़ियों में राशन लोड कर जरूरतमंदों तक पहुंचाया जा रहा है। पुलिस द्वारा शुरू की गयी इस सुविधा से अब तक किसी न किसी रूप में करीब 12000 लोग लाभांवित हो चुके हैं। पीआरवी व पुलिस थानों पर तैनात पुलिस कर्मियों को जैसे ही किसी कॉलर द्वारा अपनी परेशानी बताई जाती है। उसी समय कॉलर के लोकेशन पर पहुंच कर उसे जरूरी आवश्यक दवा, राशन व उसकी जरूरत की अन्य वस्तुएं आदि पहुँचाई जा रही हैं ।
गरीब व जरूरतमंदों के लिए पुलिस व पीआरवी की उपलब्धता 24 घंटे है। लॉकडाउन में पीआरवी लोगों की सबसे बड़ी मददगार साबित हो रही है। इसके अलावा भी पीआरवी व थानों में जरूरतमंदों के फोन आने पर राशन, दूध, सब्जी, दवा आदि की उपलब्धता सुनिश्चित की जा रही है। किसी भी प्रकार की सूचना मिलते ही पीआरवी व संबंधित थाना तुरंत रिस्पांड कर रहा है। उन्होंने जनपद की गैर-सरकारी एवं स्वैच्छिक संगठनों से इस पुनीत कार्य मे आगे आकर बढ़ चढ़कर सहयोग करने की अपील की है।
हालातों का जायजा लिया जाए तो स्थिति यह है कि बहुत कम जरूरत मंद लोगों तक यह सहायता पहुंच रही है। हर ओर की समस्या से घिरे श्रमिकों को सहयोग का कोई नजर नहीं आ रहा है और जो भी सहयोग दिया जा रहा है, वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। ऐसी स्थिति में लोग पलायन करने के लिए बाध्य हो रहे हैं। वे पलायन के हर मुसीबतों का सामना जान पर जोखिम उठाकर कर रहे हैं। यही वजह है कि शहरों से निकले जनता की भीड़ का हुजूम साफ देखा जा रहा है।
शहर के लिए सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यही है कि जो राशन कार्ड बने हुए हैं, वह तकरीबन यहां के निवासियों को ही बने हुए हैं या जो नोएडा में अपना मकान बना चुके हैं। वे श्रमिक जिनका यहां का कोई प्रूफ नहीं है, उनके पास डाक्यूमेंट्स का अभाव है और सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें मिलने का भी कोई उम्मीद नहीं है। फलस्वरूप वे सरकार के तमाम आश्वासनों के बाद भी पलायन का रुख कर रहे हैं। उन्हें सरकारी घोषणाओं से भी कोई भरोसा नहीं है। वह हर कीमत पर गांव लौटना चाहते हैं ताकि उनका भूख मिट सके। भूख की समस्या से चिंतित श्रमिक ही पलायन को बाध्य हो रहे हैं। चाहे वह दिहाड़ी मजदूर हो या फैक्ट्रियों में काम करने वाला श्रमिक या घरों में काम करने वाले मजदूर। सबकी अपनी एक ही चिंताएं हैं कि आगे क्या होगा और हालात बदतर हुए तो उनका जान खतरे में पड़ सकता है !