भगवान राम का नाम स्वयं में एक महामंत्र है। राम नाम की महिमा अपरंपार है । इस अतिरिक्त राम नाम का मंत्र सर्व रूप मे ग्रहण किया जाता है । इस कि जप से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति सहिज हो जाती है । अन्य नामो कि अपेक्षा राम नाम हजार नामों के समान है । राम मंत्र को तारक मंत्र भी कहा जाता है। इस मंत्र के जपने से सभी दुःखों का अंत होता है। प्रतिदिन भगवान श्रीराम के मंत्रों का जाप करने से मनचाही कामना पूरी होती है। साधारण से दिखने वाले मंत्रों में छिपी हुई शक्ति को पहचानने की ज़रूरत है। इन मंत्रों का नियमित रूप से जाप करने से जहां हम अचानक आने वाली परेशानियों से बचे रहते हैं। जीवन की कोई भी मुश्किल हमारी उन्नति में बाधा नहीं बन सकती। अतः आइये जानते हैं इन चमत्कारी 'राम मंत्रों' के बारे में :-
ॐ आपदामप हर्तारम दातारं सर्व सम्पदाम, लोकाभिरामं श्री रामं भूयो भूयो नामाम्यहम ! श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः ! श्री राम का यह ध्यान मंत्र बहुत ही चमत्कारिक मंत्र है ! दैनिक पूजा में इसका जप करने से इसका प्रभाव जीवन में धीरे धीरे अनुभव होने लगता है । यह जीवन में दीर्घकालिक समस्याओं से छुटकारा दिला सकता है ! यह भविष्य में आने बाले बड़े संकटों से निजात दिलाता है ! कहा जाता है कि अगर गृह क्लेश रहता हो तो भी इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
"जय श्री राम" मन्त्र का तात्पर्य- ‘श्री’, ‘राम’ और ‘जय’ तीन शब्दों का एक खास क्रम में दुहराव हो रहा है। ‘श्री’ का यहां अर्थ लक्ष्मी स्वरूपा ‘सीता’ या शक्ति से है, वहीं राम शब्द में ‘रा’ का तात्पर्य ‘अग्नि’ से है... ‘अग्नि’ जो ‘दाह’ करने वाला है तथा संपूर्ण दुष्कर्मों का नाश करती है। ‘म’ यहां ‘जल तत्व’ का प्रतीक है। जल को जीवन माना जाता है, इसलिए इस मंत्र में ‘म’ से तात्पर्य जीवत्मा से है। कहा जाता है कि वह शक्ति जो संपूर्ण दूषित कर्मों का नाश करते हुए जीवन का वरण करती हो या आत्मा पर विजय प्राप्त करती हो। अतः यह विजय मंत्र भी कहलाता है।
आपने कई बार सुना होगा और भजन आदि के समय इसका जाप भी किया होगा लेकिन आपको इसकी शक्ति का शायद पता ना हो। इस मंत्र में इतनी शक्ति है कि आपको कितनी भी बड़ी दुविधा से निकाल सकता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसके उच्चारण या कहें जाप करने के लिए किसी नियम का पालन करने की आवश्यकता नहीं है। इस मंत्र को आप दिन के किसी भी समय, कहीं भी हों, जाप कर सकते हैं। राम रक्षा मंत्र का जाप करने से साधक को अपने जीवन में सौभाग्य और सुख की प्राप्ति के साथ अकाल मृत्यु से छुटकारा भी मिलता है | राम से बड़ा राम का नाम होता है, क्यों की भगवान श्री राम नाम की महिमा का गुणगान तो स्वयं भगवान शिव ने भी स्वीकारा हैं, और हमारे पुराणों में भी राम नाम के गुणगान की महिमा वर्णित है ।
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥ -- आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्। लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम।।
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा। गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥ हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते। बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमापदे।।
राम नाम की महिमा को स्वयं शिव ने भी स्वीकारा था। पुराणों में भी राम नाम का गुणगान वर्णित है। राम के सरल और छोटे मंत्रों का हर रोज अथवा राम नवमी पर जाप करने से मनचाही कामना पूरी होती है। " ॐ राम ॐ राम ॐ राम ।- ह्रीं राम ह्रीं राम ।- श्रीं राम श्रीं राम ।- क्लीं राम क्लीं राम।- फ़ट् राम फ़ट्।- रामाय नमः । ।
१) || श्री राम जय राम जय जय राम || - २) || श्री रामचन्द्राय नमः || - ३) || राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्त्र नाम तत्तुन्यं राम नाम वरानने ।।
|| नाम पाहरु दिवस निसि ध्यान तुम्हार कपाट |।
|| अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद धन दारिद दवारि के ।।
जिमि सरिता सागर महुँ जाही। जद्यपि ताहि कामना नाहीं।। - तिमि सुख संपति बिनहिं बोलाएँ। धरमसील पहिं जाहिं सुभाएँ।
|| ॐ जानकीकांत तारक रां रामाय नमः ||
|| ॐ ह्रां ह्रीं रां रामाय नम: ।।
।। ॐ रां रामाय नमः।। -- (कहते हैं कि इस मंत्र का छः लाख बार जाप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है।
|| हुं जानकी वल्लभाय स्वाहा || -- ( कहते हैं कि इस मंत्र का दस लाख बार जाप करने से मंत्र सिद्ध होता हैं, जिससे साधक को सफलता एवं मोक्ष प्राप्ति में सफ़लता मिलती हैं ।)
गोस्वामी तुलसीदासजी का कहना है—‘राम-नाम’ राम से भी बड़ा है । राम ने तो केवल अहिल्या को तारा, किन्तु राम-नाम के जप ने करोड़ों दुर्जनों की बुद्धि सुधार दी । समुद्र पर सेतु बनाने के लिए राम को भालू-वानर इकट्ठे करने पड़े, बहुत परिश्रम करना पड़ा परन्तु राम-नाम से अपार भवसिन्धु ही सूख जाता है । "कहेउँ नाम बड़ ब्रह्म राम तें ।- राम एक तापस तिय तारी ।- नाम कोटि खल कुमति सुधारी ।।- राम भालु कपि कटकु बटोरा।- सेतु हेतु श्रमु कीन्ह न थोरा ।। - नाम लेत भव सिंधु सुखाहीं । - करहु विचार सुजन मन माहीं।।
लंका-विजय के बाद एक बार अयोध्या में भगवान श्रीराम देवर्षि नारद, विश्वामित्र, वशिष्ठ आदि ऋषि-मुनियों के साथ बैठे थे । उस समय नारदजी ने ऋषियों से कहा कि यह बताएं—‘नाम’ (भगवान का नाम) और ‘नामी’ (स्वयं भगवान) में श्रेष्ठ कौन है ?’ इस पर सभी ऋषियों में वाद-विवाद होने लगा किन्तु कोई भी इस प्रश्न का सही निर्णय नहीं कर पाया । तब नारदजी ने कहा—‘निश्चय ही ‘भगवान का ‘नाम’ श्रेष्ठ है और इसको सिद्ध भी किया जा सकता है ।’ इस बात को सिद्ध करने के लिए नारदजी ने एक युक्ति निकाली । उन्होंने हनुमानजी से कहा कि तुम दरबार में जाकर सभी ऋषि-मुनियों को प्रणाम करना किन्तु विश्वामित्रजी को प्रणाम मत करना क्योंकि वे राजर्षि (राजा से ऋषि बने) हैं, अत: वे अन्य ऋषियों के समान सम्मान के योग्य नहीं हैं ।
हनुमानजी ने दरबार में जाकर नारदजी के बताए अनुसार ही किया । विश्वामित्रजी हनुमानजी के इस व्यवहार से रुष्ट हो गए । तब नारदजी विश्वामित्रजी के पास जाकर बोले—‘हनुमान कितना उद्दण्ड और घमण्डी हो गया है, आपको छोड़कर उसने सभी को प्रणाम किया ?’ यह सुन विश्वामित्रजी आगबबूला हो गए और श्रीराम के पास जाकर बोले—‘तुम्हारे सेवक हनुमान ने सभी ऋषियों के सामने मेरा घोर अपमान किया है, अत: कल सूर्यास्त से पहले उसे तुम्हारे हाथों मृत्युदण्ड मिलना चाहिए ।’ विश्वामित्रजी श्रीराम के गुरु थे अत: श्रीराम को उनकी आज्ञा का पालन करना ही था ।‘ श्रीराम हनुमान को कल मृत्युदण्ड देंगे’—यह बात सारे नगर में आग की तरह फैल गई । हनुमानजी नारदजी के पास जाकर बोले—‘देवर्षि ! मेरी रक्षा कीजिए, प्रभु कल मेरा वध कर देंगे । मैंने आपके कहने से ही यह सब किया है ।
नारदजी ने हनुमानजी से कहा—‘तुम निराश मत होओ, मैं जैसा बताऊं, वैसा ही करो । ब्राह्ममुहुर्त में उठकर सरयू नदी में स्नान करो और फिर नदी-तट पर ही खड़े होकर ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’—इस मन्त्र का जप करते रहना । तुम्हें कुछ नहीं होगा ।’ दूसरे दिन प्रात:काल हनुमानजी की कठिन परीक्षा देखने के लिए अयोध्यावासियों की भीड़ जमा हो गई । हनुमानजी सूर्योदय से पहले ही सरयू में स्नान कर बालुका तट पर हाथ जोड़कर जोर-जोर से ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ का जप करने लगे । भगवान श्रीराम हनुमानजी से थोड़ी दूर पर खड़े होकर अपने प्रिय सेवक पर अनिच्छापूर्वक बाणों की बौछार करने लगे । पूरे दिन श्रीराम बाणों की वर्षा करते रहे, पर हनुमानजी का बाल-बांका भी नहीं हुआ । अंत में श्रीराम ने ब्रह्मास्त्र उठाया । हनुमानजी पूर्ण आत्मसमर्पण किए हुए जोर-जोर से मुस्कराते हुए ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ का जप करते रहे । सभी लोग आश्चर्य में डूब गए।
तब नारदजी विश्वामित्रजी के पास जाकर बोले—‘मुने ! आप अपने क्रोध को समाप्त कीजिए । श्रीराम थक चुके हैं, उन्हें हनुमान के वध की गुरु-आज्ञा से मुक्त कीजिए । आपने श्रीराम के ‘नाम’ की महत्ता को तो प्रत्यक्ष देख ही लिया है । विभिन्न प्रकार के बाण हनुमान का कुछ भी नहीं बिगाड़ सके । अब आप श्रीराम को हनुमान को ब्रह्मास्त्र से न मारने की आज्ञा दें ।’ विश्वामित्रजी ने वैसा ही किया । हनुमानजी आकर श्रीराम के चरणों पर गिर पड़े । विश्वामित्रजी ने हनुमानजी को आशीर्वाद देकर उनकी श्रीराम के प्रति अनन्य भक्ति की प्रशंसा की।
--‘श्रीराम’—यह भगवान राम के प्रति पुकार है । --‘जय राम’—यह उनकी स्तुति है --‘जय जय राम’—यह उनके प्रति पूर्ण समर्पण है । संसार का मूल कारण सत्व, रज और तम—ये त्रिगुण हैं । ये तीनों ही भव-बंधन के कारण हैं । इन तीनों पर विजय पाने और संसार में सब कुछ ‘राम’ मानने की शिक्षा देने के लिए इस मन्त्र में तीन बार ‘राम’ और तीन ही बार ‘जय’ शब्द का प्रयोग हुआ है । मन्त्र का जप करते समय मन में यह भाव रहे—‘भगवान श्रीराम और सीताजी दोनों मिलकर पूर्ण ब्रह्म हैं । हे राम ! मैं आपकी स्तुति करता हूँ और आपके शरण हूँ ।’