निःसंतान दम्पतियों के पुत्र प्राप्ति का बड़ा केंद्र है पाताल गंगा

निःसंतान दंपतियों के लिए एक बड़ा तीर्थ है बिहार के औरंगाबाद जिले के देव क्षेत्र स्थित पाताल गंगा
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बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित देव सूर्यस्थल से मात्र 2 किमी. दूर पाताल गंगा तीर्थ है। यहां कार्तिक पूर्णिमा को भारी मेला लगता है। यहां सुदूर क्षेत्र से भक्तजन अपनी मनोकामना लेकर आते हैं। यहां बांझपन के शिकार दम्पति संतान प्राप्ति की उम्मीद लेकर जरूर पहुंचते हैं।



यहां गर्भाशय की तरह बने और वास्तु शास्त्र के मुताबिक निर्मित पातालगंगा का त्रिकोण सरोवर निःसंतान दम्पतियों के लिए मनमुराद साबित होता है। वैवाहिक जीवन के बाद भी निःसंतान रहने वाले दंपतियों को इस सरोवर में स्नान करने मात्र से उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। निसंतान दंपति इस सरोवर में स्नान कर अपने स्नान किए हुए वस्त्र को सरोवर में छोड़ देते हैं। माना जाता है कि उन्हें 1 वर्ष के भीतर संतान की प्राप्ति हो जाती है। कुछ लोग इस तालाब को बांझन सरोवर के नाम से भी पुकारते हैं। इस तालाब में बांझन महिलाएं एवं पुरुष ही स्नान करते हैं। बाकी यहां आनेवाले लोग चतुर्भुज सरोवर में स्नान करते हैं।
 कहा जाता है कि आज से लगभग 115 वर्ष पूर्व ज्ञानीनन्‍द जी नामक एक महात्‍मा देव सूर्य मंदिर में दर्शन हेतु आये और निकट के बम्‍हौरी पहाड के पास कुटिया बनाकर रहने लगे। उनके आशीर्वाद मात्र् से लोगों का कल्‍याण होने लगाा। बाद में उनके भक्‍तों ने शिवमंदिर, राधाक़ष्‍ण मंदिर तथा हनुमान मंदिर बनवा दिये।
कुछ लोगों का कहना था कि बाबा आपको गंगा नदी के किनारे रहना चाहिए था। यह सुनकर बाबा बोले कि यदि तुमलोगों की यही इच्‍छा है तो गंगा यहीं आवेगी और ऐसा कहकर उन्होंने धरती में चिमटा धंसाया और पाताल से गंगा का जल निकलने लगाा। उसी दिन से इस स्‍थान का नाम पाताल गंगा पड गया। उसी स्‍थान पर तालाब का निर्माण किया गया है। 



 इस तालाब में स्‍नान करने से गंगा स्‍नान का लाभ प्राप्‍त होता हैा  आज भी साधु, ब्राम्‍हण तथा ऋषियों का यहॉ आदर होता हैा ब्रम्‍हचारी संस्‍क़त विधालय की स्‍थापना की गई है। देव मंदिर में दर्शन करने वाले भक्‍त गण पाताल गंगा में भी जाकर स्‍नान एवं दर्शन करते हैं। यहां कार्तिक पूर्णिमा को स्न्नान करना फलदाई माना जाता है।