वे चीजें जो शरीर में वात, पित्त, कफ के 'त्रिदोष' को बढ़ाती व घटाती हैं। आयुर्वेद के अनुसार इन तीनों दोषों से ही शरीर चलता, बढ़ता व रुकता है। अनुचित व विरूद्ध आहार-विहार, ऋतुचर्या और दिनचर्या पर ध्यान न देने से शरीर अस्वस्थ हो जाता है।
आयुर्वेद में 'त्रिदोष सिद्धान्त' की विस्तृत व्याख्या है। वात, पित्त, कफ ये शरीर के तीन दोष है। इन दोषों का शरीर पर प्रभाव होता है। इसलिए इन दोषों के मुताबिक आहार का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है। इसके अनुसार ही डॉक्टर परहेज करने को भी सलाह देते हैं। वात, पित्त, कफ की दो अवस्थाएं होती हैं। समावस्था और विषमावस्था। समावस्था (न कम, न अधिक, संतुलित, स्वाभाविक, प्राकृत) व विषमावस्था (हीन, अति, दूषित, बिगड़ी हुई, असंतुलित, विकृत) होने को कहते हैं। रोगों का कारण वात, पित्त, कफ का असंतुलन है। अस्वस्थ शरीर को पुन: स्वस्थ बनाने के लिए त्रिदोष का संतुलन अथवा समावस्था में लाना पड़ता है।
क्या है शरीर में दोष
पहले यह जानने का प्रयास करना चाहिए कि रोगी में किसी दोष का प्रभाव है। रोगी की प्रकृति किस तरह की है। वात (बादी), पित्त (गर्म) व कफ(ठंडी) प्रकृति है। दोष को ध्यान मेें रखकर आहार में परहेज की जरूरत होती है। जैसे यदि कफ की वृद्धि है तो कफवर्धक आहार से बचना चाहिए। ऐसे में कफशामक आहार लेना चाहिए।
तीन कारणों से बढ़ता वात
वात के बिगडऩे के तीन कारण हैं। सबसे पहला कारण आहार, दूसरा कारण जीवन शैली और तीसरा मानसिक भाव है। आहार में चना, मूंग की दाल व अन्य दालें (उड़द की दाल को छोड़कर)। करेला, परवल, लौकी, तोरई से वात बढ़ता है। बाजरा ज्वार, जौ, चने आदि से बने हुए भोजन व बांसी खाने से वात बढ़ता है। देर रात तक जागना, ज्यादा कसरत करना, अधिक मेहनत करना, कम आहार खाना, उल्टी व दस्त होने से वात बढ़ता है। रात के समय नींद कम लेने व चिंता अधिक करने से भी वात बढ़ता है।
ये हैं वातशामक
वातशामक यानी वे उपाय जिनसे वायु दोष दूर होगा। इसके लिए आहार, जीवनशैली पर ध्यान दें। खुश रहें। आहार में दूध (पनीर, मावा, मिठाई) व उससे बनी हुई चीजें, घी, गुड़, चीनी, मांसाहार, लहसुन, प्याज, हींग, अजवाइन, सरसों व तिल का तेल से वात कम होता है। नियमित सात से आठ घंटे की नींद, दोपहर में सोने, ज्यादा थकाने वाले व्यायाम न करना, आरामदायक कुर्सी पर बैठने से वात की स्थिति घटती है। चिंता व तनाव से बचें। पानी पर्याप्त मात्रा में पीएं। सलाद, मौसमी फल खाएं।
तीन कारक कफ वर्धक के
आहार में दूध (पनीर, मावा, मिठाई) व उससे बनी हुई चीज, घी, मीठा आहार, गुड़, चीनी, आइसक्रिम, मांसाहार से कफ बढ़ता है। जीवन शैली में ज्यादा सोना (सात-आठ घंटे से ज्यादा), दोपहर में सोना, व्यायाम न करना, एसी में लम्बे समय तक रहना व पूरे दिन आरामदायक कुर्सी पर बैठे रहने से कफ बढ़ता है। मानसिक स्थिति की बात करें तो कम चिंता करने वाले लोगों में एवं अधिक खुश रहने वालों में प्राकृत कफ बढ़ता है।
कफशामक आहार
चना, मूंग की दाल व अन्य दालें (उड़द को छोड़कर), करेला, लहसुन, प्याज, तोरइ, गर्म मसाले सरसों व राई का तेल कफ दोष को ठीक करता है। देर रात तक जागना, नियमित कसरत करना, गर्म पानी पीने व चिंतन करने से कफ कम होता है।
ये बढ़ाते हैं पित्त
बैंगन, सरसों का साग, हल्दी, लहसुन, खट्टे अचार प्रमुख पित्तवर्धक है। ज्यादा व्यायाम करना, धूप में ज्यादा देर तक बैठना, अग्नि के पास बैठना, गर्मी पैदा करने वाली मशीनों के पास काम करने और चिड़चिड़ेपन व ज्यादा क्रोध करने से पित्त बढ़ता है।
ये है पित्तशामक
पित्त को कम करने वाले आहार के तहत दूध व उससे बनी चीजें, चावल, मिठाई, ठंडा पानी, केला, सेब, अनार, अंगूर, आंवला, लोकी, करेला, मैथी, परवल व हरी पत्ते वाली सब्जियां प्रमुख हैं। जीवन शैली के तहत ठंडे कमरे में बैठना (एसी रूम में लम्बे समय तक बैठे रहना), पानी के फव्वारे, नदी व समुद्र के तट पर बैठना, मोती, हीरे व अन्य रत्नों की माला या अंगूठी पहनना, सुंगधित फूलों की माला पहनना एवं चांदनी रात में बैठने से पित्त कम होता है। मानसिक भाव के तहत खुश रहने से पित्त कम होता है।
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